सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2014

रैंप पर कैटवाक करके बचेंगी बेटियां?

हा हा...........हूऊऊऊऊऊऊओ हो हो हूऊऊऊऊ हाआअ  हा हा हा हाआआआआ
य त ल .... अरे वो... 
पहले मुझे हँस लेने दो, क्योंकि टाइप नहीं कर पा रहा हूँ....
ओफ्हो... अरे राम. पेट में दर्द हो गया.
सांस तो ले लूं जरा.
हम्म.
पता है क्यों हँसे जा रहा हूँ मैं. असल में मुझे आज सुबह ही पता चला कि मुंबई में कुछ महिलाओं (जिनमें से कुछ फिल्मों में भी काम कर चुकी हैं) ने रैंप पर कैटवाक किया, वो भी बेटी बचाने के लिए. उन्होंने महिलाओं को जागरूक करने वाले शब्द नहीं बोले, उन्होंने भ्रूण परीक्षण करने वाले डॉक्टरों को कुछ नहीं समझाया, उन्होंने बेटी भ्रूण को जन्म देने की अपील भी नहीं की, और तो और उन्होंने बेटी की सुरक्षा और सेहत का सुझाव भी नहीं दिया.... पर बेटी बचाने के लिए रैंप पर चल दिए... अ अ अ....आ चल नहीं दिए, बेटी बचाओ का प्रदर्शन किया.... हाँ ये शब्द ठीक है... बोलने में भी सम्मान जनक लगता है.
अब कौन बेवजह असलियत बयाँ करने की जुर्रत करे कि रैंप पर चलने से बेटी नहीं बचाई जा सकती, बेटी बचाने के लिए रैंप पर नहीं लोगों के दिल-ओ-दिमाग में झाकना पड़ेगा, उन्हें उनके रूढ़ीवादी विचारधारा को बदलना पड़ेगा.

क्या आप कष्ट करेंगे ये बताने का कि कितनी बेटियों को बचा लिया रैंप करके, बताना ज़रा???
अगर रैंप पर जलवे बखेरने से बेटियां बचाई जा सकती, तो जनाब भारत सरकार क्या मूर्ख है जो करोडो रुपये पानी की तरह बहा रही है, कड़े क़ानून बना रही है, तब भी हम धनात्मक प्रतिक्रिया को तरस रहे हैं.

माफ़ कीजिएगा, पर अगर रैंप पर कैटवाक करके बेटियां बचाई जा सकती तो देश में हर रोज 80 करोड़ लोग रोज कैटवाक करते हैं, हाँ ये अलग बात है कि वो कैटवाक सड़कों पर करते हैं..... और आज देश की हर भ्रूण बेटी बच जाया करती और आये दिन पैदा होने से पहले मरती नहीं.

देखिये तो जरा... कैसे बेटियां बचा रहे हैं.... अरे वाह! ओह... ओफोह. क्या बात है........

   

  

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